Sunday, September 1, 2019

क्षत्रिय कचेली तेली (घांची) समाज का इतिहास देलवाडा Kshtriya kacheli Teli ghachi Samaj ka itihas delwara history of teli samaj delwara

क्षत्रिय कचेली तेली (घांची) समाज का  इतिहास देलवाडा

Lakshminarayan Bhagwan

पाटन के राजा सिद्धराज जयसिंह ने रूद्र महल बनाने की इच्छा प्रकट की इस समय इन्होने
अपने पुरोहित से कहा कि क्या मेरी उम्र में यह महल बनेगा और मेरी उम्र कितनी है? और इस
महल को बनने में कितना समय लगेगा? पुरोहित ने बताया कि आपकी उम्र अभी 12 वर्ष है और
महल को बनने में 24 वर्ष लगेंगे। 24 वर्ष का काम 12 वर्ष में करने हेतु रात में मशाल जलाने के
लिए बहुत ज्यादा तेल के भंडारे की आवश्यकता पड़ी, तो रात दिन काम करते करते तेली लोग
थक गये और एक दिन वो अपना हिसाब लेकर रात को जो सरदार इनके ऊपर देख रेख कर रहे थे
इनकों खाने की पार्टी देकर भाग खडे हुये। फिर राजा के पास रूद्र महल का कार्य समय पर पूरा
करने हेतु तेल की कमी आने लगी तो जो सरदार तेलियों के ऊपर देखरेख करते थे इनको आदेश
दिया कि अब आपको यह काम करना है और इसके लिए आपको मेहनताना तेलियों से दुगुना देंगे।
इसके लिए राजकुमार भी इनके साथ काम में शामिल हो गया। सरदारों ने घाणी चलाने का काम
शुरु किया और राजा ने मोहरे देने का। समय रहते काम पुरा हो गया तो सरदारों के पास बहुत धन
इकट्ठा हो गया और वापस जाजम बैठी जिसमें उनके राजा द्वारा पुरस्कृत करना था इसकी निशानी हेतु अपने तेल से भरे अँगोछे कंधों पर लेकर आये। इस समय जाजम पर बैठे दूसरे सरदारों
ने उनसे कहा कि तुम्हारा कमाया आधा धन हमे  दो तो हम तुम्हें हमारे साथ बैठने देंगे नहीं तो तुम
अपना अलग जाजम लगा लो। इन सरदारों  ने उनकी नहीं सुनी और अपना अलग जाजम लगा ली
! फिर ये लोग पाटन छोड़कर आबू आ गये । जिन लोगों ने घाणी का काम  किया वो घाँची
राजपूत कहलाये। तेल का धंधा करने से उनको कचेलिया तेली भी कहा गया और जिसने तेल
निकालते समय लाट उठाने का काम किया उन्हें लाटेचा राजपूत कहा गया।
आबू आने के बाद इनके साथ कोई राव नहीं आया और राव पाटन में ही रह गये। 1191 में
पाटन छोड़कर आबू आने के बाद 9 वर्ष तक बिना राव (गुरु) के ही रहने लगे तो एक दिन इनकी
जाजम बैठी इसमें यह निर्णय लिया कि अपने गुरु (राव) को तो बुलाना ही पड़ेगा नहीं तो मामा,
मौसी, बुआ, भतीजा में सगपन हो जायेंगे और हिंदू धर्म डूब जायेगा इसी विचार को लेकर जाजम दिखती है जिसकी राव प्रशंसा करते आशीष देता है।
आबू में राव चंच से बही वंशा कर बही में समाज का संविधान लिखाया जिसमें सोमवार के दिन
घाणी नहीं चलायेंगे और बैल का कच्छी नहीं करायेंगे, सोमाचा आषाढ सुद स्यारस से कार्तिक सुद
ग्यारस तक घाणी नहीं चलाएंगे आठ महिना घाणी चलायेंगे। घाणी तथा हल चलाने में पाड़े
(भैंसा) को काम में नही लेंगे। प्रति घाणी बैल को खल का टकडा दिया जायेगा और घाणी जोतने
से पहले गणपती की स्थापना कर शनिचर और शिवजी की पूजा करेंगे। अपने अपने गौत्र के देवी
देवताओं के दिन की पालना होगी कन्या के बदले कन्या ले दी जायेगी। श्रद्धा होवे तो धर्मविवाह
करेंगे, व्यवहार के सोलह रुपये फदिया के सोलह रुपये लड़के का बाप लड़की के बाप को देगा।
गांव की लागत, कुलदेवों की लागत कन्या धर्म परणायेंगे तो लड़की का बाप आधी लागत देगा।
सगपण अपनी गौत्र छोड़कर करेंगे. कोई भी बाप बेटा बेटी का सगपण एक ही गौत्र में करेंगे तो
इनको न्यात से अलग कर दिया जाएगा घोड़ी चढ़कर तोरण वोदेंगे तो वह घोडा भाट को देना
पड़ेगा। मांस मंदिरा का सेवन नहीं किया जायेगा। शिवजी की जनोई पहनेंगे, कोई तालाब कुआ
बावड़ी मंदिर बनायेंगे तो वहां भाट का नाम भी लिखा जायेगा पुत्र पुत्री की शादी न्यात मोसर के
वक्त भाट को दान कायदा मुताबिक दिया जायेगा और भाट को एक गांव से दूसरे गांव पहुंचाने की
जिम्मेदारी चार पंच करते जायेंगे। घाणी से निकले तेल में से भाट को एक कटोरी तेल और खल का
ट्रक का दिया जायेगा। पुत्री की सगाई के समय गुड़ रोटी खाने के समय, अमल गालने के समय खार
भांगड़ा भरेंगे और श्रद्धा अनुसार भाट को देंगे, मेहमान दो दिन रूकेंगे, गांव की लागत देंगे, कन्या
की पेरावणी दो लायेंगे, विवाह में बारात तीन दिन रहेगी, कन्यावर चार होगी लापसी की पहली वर
जीमेंगे, दाल रोटी लापसी की दो वर जीमेंगे और श्रद्धा होगी तो चौथी वर साकर की होगी, नहीं तो
दाल रोटी होगी।भाट के लिए चार पंच भोजन लेकर श्रद्धा अनुसार जीमण होगा।भाट के लिए चार
पंच भोजन लेकर श्रद्धा अनुसार दान देकर आयंगे जिसमें गुड घी दलीया और वेश भाट भाटन को
देंगे। सोना की पेरावणी होगी तो भाट को भी कपड़ा हाथी डबल डाली जायेगी। कन्या ससुराल
जायेगी तब भाट की बही में नाम लिखाने की लागत दी जायेगी। किसी की श्रद्धा होगी तो डायसा
दिया जायेगा जो लड़के के पिता को दिया जायेगा, भाट भाटन को वेश दिया जायेगा। समाज में
देवरवंट की प्रथा नहीं होगी। ज्ञात जाति तथा गंगा प्रसादी होगी तो भाट की बही में लिखाया
जायेगा। घी की चर्बी फिरेगी तो वह चरबी घी से भरकर भाट के डेरे पहुंचाई जायेगी। ये हिसाब से
समाज की लाग मुराद आठ गोत्र मिलकर भाट की बही में आबू में लिखाया। इस संविधान को
तोडेंगे तो धर्म भ्रष्ट होगा, आबू अचलेश्वर रूठेंगे, गोत्र हत्या ब्रह्महत्या लगेगी। कुलहीन संतान
होगी, देश प्रदेश जायेंगे तो इस संविधान का पालन किया जायेगा। इस संविधान को तोडेंगे तो
घाँची राजपूत नहीं होंगे और घाँची राजपूत होने के लिए उपरोक्त संविधान का पालन, चाहे वो
दुनिया के किसी भी कोने में रहे की जाएगी। यह संविधान राव चंच से आबू में आठ गौत्र के राजपूत
पाँचों ने संवत 1200 में वैशाख सुद पंचम, रविवार को लिखवाया।
***
कचेली तेली समाज लक्ष्मीनारायण भगवान देलवाडा राजसमंद राजस्थान


प्रिय मित्रों अगर हमारी यही पोस्ट अच्छी लगी हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे । ।

1 comment:

  1. बोराणा गोत्र सुध रूप से तंवर वंस की गोत्र है, तंवर तोमर जो कि पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंशज है। क्षत्रिय वंस की शाखा है, राजा अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना जिनका मालवा , मारवाड़ ओर देसूरी पर सासन था। अनंगपाल प्रथम के पुत्र बोडाना के नाम से ओर उनके वंस से बोराणा गोत्र की उतपति हुई और धीरे धीरे बोराणा गोत्र के रूप परचलित हो गई । इस तरह ये तंवर राजपुतो की एक शाखा बोराणा बनी । तंवर वंस बोराणा वंस एक ही है। ये सब हमारे राव भाटो की बहियों में लिखा है।

    ReplyDelete